Aaj Ki Taza Khabar: पाकिस्तान को सीधा और अमेरिका को अप्रत्यक्ष संदेश:

पाकिस्तान को सीधा और अमेरिका को अप्रत्यक्ष संदेश: लाल किले से पीएम मोदी के भाषण के मायने

    • अभय कुमार सिंह
    • पदनाम,बीबीसी संवाददाता

15 अगस्त 2025 को लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में सिंधु जल समझौते पर सख़्त रुख़, आत्मनिर्भरता पर ज़ोर, जीएसटी में बदलाव और रोज़गार योजना की घोषणाएं कीं.

उन्होंने देश की 'डेमोग्राफ़ी' को लेकर चेतावनी दी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के योगदान का ज़िक्र किया और आपातकाल का हवाला भी दिया.

उन्होंने अपने संबोधन में अमेरिका के टैरिफ़ का प्रत्यक्ष ज़िक्र नहीं किया, लेकिन आत्मनिर्भरता पर ज़ोर दिया. विश्लेषकों के मुताबिक़, यह प्रधानमंत्री मोदी की ओर से अप्रत्यक्ष संदेश था.     

 वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक अदिति फडणीस और शरद गुप्ता के अनुसार पीएम मोदी का भाषण पिछले वर्षों की तुलना में कई मायनों में अलग था.
उनका मानना है कि इस बार प्रधानमंत्री ने दूरगामी योजनाओं की जगह मौजूदा चुनौतियों और परिस्थितियों पर ज़्यादा ध्यान केंद्रित किया.

अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर संदेश: अमेरिका को परोक्ष जवाब, पाकिस्तान को चेतावनी

नरेंद्र मोदी

इमेज स्रोत,Prakash Singh/Bloomberg via Getty Images

इमेज कैप्शन,लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री मोदी ने इस बार कई घोषणाएं की हैं

भाषण का एक अहम हिस्सा विदेश नीति और सुरक्षा मुद्दों पर केंद्रित रहा.

प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तान और हाल ही में हुए 'ऑपरेशन सिंदूर' का ज़िक्र किया. उन्होंने कहा, "अब ब्लैकमेलिंग नहीं सहेंगे... आज लाल किले की प्राचीर से ऑपरेशन सिंदूर के जांबाज़ों को सैल्यूट करने का अवसर मिला है. हमारे वीर सैनिकों ने दुश्मनों को उनकी कल्पना से परे सज़ा दी है."

इसी के साथ प्रधानमंत्री ने आत्मनिर्भरता पर ज़ोर देते हुए कहा, "हम स्वदेशी को मजबूरी में नहीं, मजबूती के साथ उपयोग करेंगे और ज़रूरत पड़ी तो औरों को मजबूर करने के लिए उपयोग करेंगे, यह हमारी ताकत होनी चाहिए.''                    

बिना किसी देश का नाम लिए प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं, ''किसी दूसरे की लकीर छोटी करने के लिए अपनी ऊर्जा हमें नहीं खपानी है. हमें पूरी ऊर्जा के साथ अपनी लकीर को लंबा करना है. हम अगर अपनी लकीर लंबी करते हैं, तो दुनिया भी हमारा लोहा मानेगी. आज जब वैश्विक परिस्थितियों में आर्थिक स्वार्थ दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है, तब समय की मांग है कि हम उन संकटों पर रोते न बैठें. हिम्मत के साथ अपनी लकीर को लंबा करें.''

प्रधानमंत्री मोदी के पूरे भाषण पर अदिति फडणीस कहती हैं, ''मुझे नहीं लगता कि उन्होंने कोई बहुत बड़ी घोषणा की. लेकिन जो भी अमेरिका ने किया है और उसका जो प्रभाव होगा, वह हर भारतीय को छुएगा. अभी इसका पूरा अहसास नहीं है, लेकिन कोई भारतीय इससे अछूता नहीं रहेगा. मेरे ख़याल से पूरा भाषण इसी मुद्दे के इर्द-गिर्द था. प्रत्यक्ष नहीं, पर अप्रत्यक्ष रूप से यही संदेश था कि अमेरिका के कदम का पुरज़ोर जवाब देना होगा, और यह तभी संभव है जब हम आत्मनिर्भर हों.''

बता दें कि हाल ही में अमेरिका ने भारत पर 50 फ़ीसदी टैरिफ़ का एलान किया है और आगे और टैरिफ़ लगाने की चेतावनी भी दी है.

शरद गुप्ता का कहना है, "दिक्कत यही है कि हम अभी भी अमेरिका से निगोशिएट कर रहे हैं. और ये म्यूचुअल है, अमेरिका को भी भारत के प्रोडक्ट्स की उतनी ही ज़रूरत है जितनी हमें अमेरिका के मार्केट की, या अमेरिका को हमारे मार्केट की उतनी ही ज़रूरत है जितनी उसको हमारे प्रोडक्ट्स की. इसलिए टैरिफ़ को लेकर यह रस्साकशी जारी है.

वह कहते हैं, ''लेकिन जो 'वोकल फॉर लोकल' और 'मेड इन इंडिया' की बात है, तो वो अमेरिका से ज़्यादा चीन को लेकर टारगेटेड है. क्योंकि चीन से हमारा ट्रेड डेफ़िसिट बढ़ता जा रहा है. चीन से हमारा इंपोर्ट बढ़ रहा है जबकि एक्सपोर्ट घट रहा है, तो वो एक बड़ी चिंता की बात है."

प्रधानमंत्री ने रक्षा उत्पादन पर ज़ोर देते हुए कहा, "हमारे पास अपने स्वयं के मेड इन इंडिया लड़ाकू विमानों के लिए जेट इंजन होने चाहिए... आत्मनिर्भरता सीधे हमारी ताकत से जुड़ी है."

अदिति फडणीस इसे अमेरिका की टैरिफ़ नीति के जवाब के रूप में देखती हैं, जबकि शरद गुप्ता का मानना है कि यह संदेश चीन से बढ़ते आयात और घटते निर्यात की चुनौती से भी जुड़ा है.

आरएसएस का ज़िक्र, विपक्ष पर नरम रुख़

पीएम मोदी

आरएसएस पर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, "आज से 100 साल पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का जन्म हुआ था. व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण के इस संकल्प को लेकर स्वयंसेवकों ने मातृभूमि के कल्याण के लिए अपना जीवन समर्पित किया."

उन्होंने कहा, "राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आज दुनिया का एक तरह से सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन (एनजीओ) है. इन 100 वर्षों का इतिहास समर्पण का इतिहास है."

अदिति फडणीस इसे भाषण का ख़ास हिस्सा मानती हैं. वह कहती हैं, "राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का ज़िक्र प्रधानमंत्री ने अपने 15 अगस्त के भाषण में पहली बार किया है. मुझे याद नहीं कि पहले कभी उन्होंने यहां से आरएसएस के बारे में बोला हो. यह आरएसएस के 100 साल पूरे होने के मौके पर एक ख़ास संकेत था."

शरद गुप्ता इसे एक संदेश मानते हैं. वह कहते हैं, "लाल किले की प्राचीर से उन्होंने आरएसएस का नाम लेकर संदेश देने की कोशिश की है कि देखिए, जो कुछ है, हम ही आपके (आरएसएस) लिए कर रहे हैं, आगे भी करते रहेंगे, लेकिन कम से कम हमें एक फ्री हैंड दीजिए, अपने हिसाब से सरकार चलाने दीजिए. प्लीज़ बैकसीट ड्राइविंग मत कीजिए, हम आपके सम्मान में कोई कमी नहीं रखेंगे."

वह इसे समझाते हुए कहते हैं, "कई महीने हो गए हैं कि बीजेपी अपना राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं चुन पाई है. अब उपराष्ट्रपति का चुनाव आने वाला है, उसमें कौन उम्मीदवार होगा, यह भी तय नहीं है. कई अहम पद खाली हैं, जिन्हें भरना है, और इसमें संभव है कि कई राज्यपालों का भी तबादला हो. यानी कई ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर आरएसएस और सरकार के बीच सहमति नहीं बन पा रही है."

प्रधानमंत्री मोदी के विपक्ष और दूसरे राजनीतिक दलों को लेकर अपनाए गए रुख़ पर अदिति फडणीस कहती हैं, "अगर हम इस भाषण की तुलना पिछले भाषण से करें, तो वहां पर उन्होंने विपक्ष पर ख़ूब निशाना साधा था. और इस बार उनकी बातचीत एक स्टेट्समैन जैसा लहजा लिए हुए थी कि ये देश हम सबका है और हम सब मिलकर आगे बढ़ें. यह दर्शाता है कि बीजेपी को अब अहसास हो रहा है कि हम सीटों (लोकसभा) में थोड़ा गिर गए हैं और इसको ठीक करना ज़रूरी है."

शरद गुप्ता इसे मौजूदा राजनीतिक समीकरण से जोड़ते हैं. वह कहते हैं, "ऐसा हो सकता है कि उतना आत्मविश्वास नहीं था, जितना पिछले कई भाषणों में था. इस बार सरकार चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार के भरोसे पर चल रही है तो कहीं न कहीं ये आपके कॉन्फिडेंस और नैरेटिव को प्रभावित करता है. इसलिए भी उन्होंने विपक्ष पर उतना खुलकर निशाना नहीं साधा."

बिहार चुनाव, 'डेमोग्राफ़ी मिशन' और अनकहे मुद्दे

विश्लेषकों का मानना है कि घोषणाओं का समय बिहार चुनाव से पहले का है, जिससे इनका राजनीतिक असर पड़ सकता है.

अदिति फडणीस कहती हैं, "बिहार चुनाव के बारे में उन्होंने ज़िक्र भी नहीं किया. जबकि पहले जब आसपास चुनाव होते थे, तो किसी न किसी रूप में उसका संकेत भाषण में मिल ही जाता था. मुझे याद है कि कई बार उन्होंने आने वाले चुनाव का सीधे या अप्रत्यक्ष ज़िक्र किया है, लेकिन इस बार बिल्कुल नहीं किया."

वह आगे कहती हैं, "कुछ बातें ऐसी भी थीं जो नहीं कही गईं और जिन पर ध्यान देना ज़रूरी है. जैसे विपक्ष का आरोप कि चुनावों में अनियमितताएं हुई थीं, चुनाव आयोग पूरी तरह से समझौता कर चुका है और अपनी भूमिका नहीं निभा रहा, इस पर भी उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. ये बात भी एक तरह से अनकही रह गई."

पीएम मोदी

शरद गुप्ता इसे समय और राजनीतिक परिस्थिति से जोड़ते हैं. उनके मुताबिक़, "मुश्किल से मुश्किल दो या तीन महीने बचे हैं जिससे बिहार का चुनाव शुरू हो जाएगा, इसलिए ये लग रहा है कि भाषण बिहार के चुनाव के लिए भी केंद्रित है. जो एलान किए गए हैं, वो 'मेड इन इंडिया', आत्मनिर्भर भारत और रोज़गार जैसी लोक-लुभावनी योजनाओं से जुड़े हैं, जिन्हें हर चुनाव से पहले लॉन्च किया जाता रहा है."

इसी क्रम में प्रधानमंत्री मोदी ने 'डेमोग्राफ़ी मिशन' का भी एलान किया. प्रधानमंत्री ने कहा, "षड्यंत्र के तहत, सोची-समझी साजिश के तहत देश की डेमोग्राफ़ी को बदला जा रहा है.''

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, "इसलिए हमने एक 'हाई पावर डेमोग्राफ़ी मिशन' शुरू करने का निर्णय किया है."

इस पर अदिति फडणीस कहती हैं, "जो सेन्सस होने वाला है और उसके बाद डिलिमिटेशन होगा, और फिर पार्लियामेंट की सीटें बढ़ेंगी. मेरे ख़याल से, ये बहुत ज़रूरी है. ख़ासकर उन राज्यों में जहां डेमोग्राफ़ी में पिछले कुछ वर्षों में बड़ा बदलाव आया है, ये मिशन राजनीतिक और सुरक्षा दोनों दृष्टियों से अहम है."

शरद गुप्ता एक सवाल भी उठाते हैं. वह कहते हैं, "अगर विपक्ष चाहे तो कहेगा कि कई साल से प्रधानमंत्री आप हैं और इतिहास की सबसे बड़ी बहुमत भी आपके पास रही है, फिर भी घुसपैठियों की समस्या नहीं रुकी. यह एक तरह से 'एडमिशन ऑफ फेल्योर' है. साथ ही, इस मुद्दे को लगातार उठाना उनकी रणनीति का हिस्सा भी है, क्योंकि यह वोट बैंक और चुनावी एजेंडा दोनों से जुड़ता है."

आर्थिक घोषणाएं

पीएम मोदी

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